लॉग इन करें।
Photo by Tirumala

तिरुमाला तिरूपति देवस्थानम

Tirupati, Andhra Pradesh, India
Anand singh Tomar

क्या आपके आस-पास कोई मंदिर है?

अपने क्षेत्र के धार्मिक स्थलों की जानकारी सभी तक पहुँचाने में मदद करें। यदि आपके आस-पास कोई मंदिर है जो यहाँ सूचीबद्ध नहीं है, तो कृपया उसे वेबसाइट में जोड़ें।

अभी मंदिर जोड़ें
आपके लिए सुझावित:

तिरुमाला मुख्य मंदिर: एक दिव्य धरोहर

परिचय

तिरुमाला मुख्य मंदिर, जिसे भगवान श्री वेंकटेश्वर का निवास माना जाता है, भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि इसकी दिव्य वास्तुकला और परंपराएं इसे विश्व स्तर पर अद्वितीय बनाती हैं। यह लेख मंदिर की दिव्य संरचनाओं, परंपराओं और ऐतिहासिक महत्व को विस्तार से उजागर करता है।


मंदिर का पौराणिक इतिहास

भगवान श्री वेंकटेश्वर, जिन्हें श्रीनिवास, बालाजी और वेंकटचलपति के नामों से भी जाना जाता है, ने लगभग 5000 वर्ष पूर्व तिरुमाला को अपना निवास बनाया। किंवदंती है कि इससे पहले भगवान वराहस्वामी ने यहां निवास किया। भगवान श्री वेंकटेश्वर ने उनसे भूमि का उपहार मांगा, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। बदले में, भगवान श्रीनिवास ने वादा किया कि भक्त पहले भगवान वराहस्वामी के दर्शन करेंगे। यह परंपरा आज भी जारी है।


मंदिर का वास्तुशिल्प और प्रमुख संरचनाएं

1. महा द्वारम (मुख्य प्रवेश द्वार)

मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार, जिसे महा द्वारम या सिंहद्वारम कहा जाता है, 50 फीट ऊंचा है। इसे 13वीं शताब्दी में निर्मित किया गया था और समय-समय पर इसका विस्तार किया गया। यह द्वार तीन भागों में विभाजित है:

  • पहला पीतल का द्वार
  • दूसरा चांदी का द्वार
  • तीसरा सोने का द्वार

यहां पंचलोहा से बनी शंखनिधि और पद्मनिधि की मूर्तियां स्थित हैं, जो भगवान श्री वेंकटेश्वर के खजाने के रक्षक माने जाते हैं।


2. श्री भू वराहस्वामी मंदिर

तिरुमाला में स्वामी पुष्करिणी तालाब के पास स्थित यह मंदिर भगवान वराहस्वामी को समर्पित है। यहां भगवान की परंपरागत पूजा होती है, और भक्तों को दर्शन के क्रम में पहले इस मंदिर में आना अनिवार्य है।


3. ध्वजस्तंभ मंडपम

मंदिर परिसर में स्थित स्वर्ण ध्वजस्तंभ 15वीं शताब्दी में बनाया गया था। ब्रह्मोत्सव के दौरान, इस पर गरुड़ की छवि वाला ध्वज फहराया जाता है। इसके पास स्थित बलि पीठम (वेदी) पर नैवेद्यम चढ़ाने की परंपरा है।


4. रंगनायक मंडपम

14वीं शताब्दी के दौरान, मुस्लिम आक्रमणों से बचाने के लिए श्रीरंगम से भगवान रंगनाथ की मूर्तियों को यहां लाया गया था। यह मंडपम उनकी सुरक्षा और पूजा के लिए बनाया गया था।


5. कृष्णदेवरायलु मंडपम

विजयनगर साम्राज्य के सम्राट श्री कृष्णदेवरायलु ने यह मंडपम बनवाया। यहां उनकी और उनकी दो पत्नियों की मूर्तियां स्थित हैं, जो उनके द्वारा भगवान श्री वेंकटेश्वर के प्रति अर्पित भक्ति को दर्शाती हैं।


6. विमान प्रदक्षिणम

यह पथ मंदिर के आनंद निलय विमानम (स्वर्ण गोपुरम) के चारों ओर बना है। भक्तों द्वारा यहां अंग प्रदक्षिणा (देवता की परिक्रमा) की जाती है।


7. गर्भगृह (आनंद निलयम)

मंदिर का पवित्रतम स्थान गर्भगृह है, जहां भगवान श्री वेंकटेश्वर की स्वयंभू प्रतिमा स्थित है। इसके ऊपर स्थित स्वर्ण गोपुरम, जिसे आनंद निलय विमानम कहा जाता है, 64 मूर्तियों से सुसज्जित है। यहां पूजा और अर्चना विशेष विधियों से की जाती है।


परंपराएं और अनुष्ठान

1. तुलाभरम

भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर तुलाभरम अनुष्ठान करते हैं, जिसमें वे अपने वजन के बराबर चढ़ावा (सिक्के, अनाज या मिठाई) अर्पित करते हैं।

2. डोलोत्सवम

यह सेवा प्रतिदिन दोपहर में अडाला मंडपम में आयोजित होती है। इस अनुष्ठान में भगवान को झूले पर बैठाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

3. मुक्कोटि प्रदक्षिणम

यह परिक्रमा मार्ग वैकुंठ एकादशी और द्वादशी के विशेष अवसर पर खुलता है। इसे 'वैकुंठ द्वारम' भी कहा जाता है।

4. लड्डू प्रसादम

तिरुमाला का प्रसिद्ध लड्डू प्रसादम, जिसे पोटू (मंदिर की रसोई) में तैयार किया जाता है, भक्तों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। इसे बनाने की प्रक्रिया अत्यंत शुद्ध और भव्य होती है।


ऐतिहासिक महत्व

1. अन्नामाचार्य और उनका योगदान

मंदिर के इतिहास में तल्लपका अन्नामाचार्य का योगदान अद्वितीय है। उन्होंने भगवान श्री वेंकटेश्वर की स्तुति में 32,000 से अधिक गीत लिखे। उनके भजनों को तांबे की पट्टिकाओं पर अंकित किया गया और आज ये 'संकीर्तन भंडारम' में संरक्षित हैं।

2. राजा टोडारमल्लू

17वीं शताब्दी के दौरान, राजा टोडारमल्लू ने मंदिर को विदेशी आक्रमणों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी और उनके परिवार की मूर्तियां मंदिर परिसर में स्थित हैं।


तिरुमाला यात्रा के दौरान विशेष दर्शनीय स्थल

  1. स्वर्ण द्वार (बंगारू वकीली)
    यह गर्भगृह का प्रवेश द्वार है, जो सोने से मढ़ा हुआ है। इसे पार करने के बाद भक्त भगवान के दिव्य स्वरूप का दर्शन कर सकते हैं।
  2. पुला बावी (फूलों का कुआं)
    भगवान की पूजा में प्रयुक्त फूल यहां संग्रहीत किए जाते हैं।
  3. बंगारू बावी (स्वर्ण कुआं)
    इस कुएं का पानी अभिषेक और प्रसादम की तैयारी के लिए उपयोग किया जाता है।

निष्कर्ष

तिरुमाला मुख्य मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। इसकी दिव्य संरचना, परंपराएं और इतिहास इसे भक्तों के लिए एक अद्वितीय अनुभव बनाते हैं। यहां की हर प्राचीर, हर मूर्ति, और हर अनुष्ठान भक्तों को दिव्यता का अनुभव कराता है।

कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया लिखें

Shop Pooja Essentials & Spiritual Books


Read More


Load More
;